नजाने क्यूँ , यूँही किसी पल
उदास हो उठता है जब कभी यह मन
शायद किसी की याद से , या फिर किसी की कमी से
या शायद मेरी खुदी की बंजर ज़मीन से
दिल कभी ये भर आता है
आँखें मगर कुछ कह नहीं पाती
अब क्या किसी को बोल के बतायें
कैसे किसी और को समझाए
होंठ भी शायद इसलिए सिले रह जाते है
खुद अपने ही दिल की बात जब समझ नहीं पाते है
चाहत किसी की कभी कर लेते है
अपना हक समझ के मांग कुछ लेते है
दुनिया से जो भी मिलता है खुश उसी में रह लेते है
अपने दिल का हाल अब क्या हम बतायें
गम में डूबे रहते है चारो पहर बगैर आंसू बहाए
इस ज़िन्दगी से ऐसे हुए हम शर्मिंदा है
कैसे कहे के अब तो बस कहने के लिए ही जिंदा है
3 comments:
last 4 lines...I think I should be back to India now..
bahut umda peeyush...
aapko pata hai, aap guru dutt ban chuke ho.. absolutely.. :P
bass ab books publish hone wali hain..:D
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